15 दिसम्बर की सुबह हरि मंदिर में आसा दी वार की भोग की अरदास में जब सूबा बलविंदर सिंह जी ने उस्ताद ज़ाकिर हुसैन जी की तंदुरूस्ती के लिए अरदास की तो मेरे दिल को धक्का सा लगा और मन मे नकारात्मक विचार आने लगे क्योंकि मुझे 15 नवंबर को ही प्रसिद्ध तबला वादक पं योगेश समसी जी से चर्चा के दौरान द्वारा ज्ञात हुआ था कि उस्ताद जी की सेहत ठीक नहीं चल रही है। हम सभी उनके स्वास्थ को लेकर चिंतित तो थे लेकिन जब अरदास में उनका नाम आया तो ये चिंता और बढ़ गई। आसा दी वार के बाद जब मैं घर आया तो करीब आधे घंटे बाद हजूरी रागी बलवंत सिंह जी का फोन आया कि ज़ाकिर भाई ICU में हैं और उनकी सेहत बहुत ख़राब है, ये सुनते ही जैसे पैरों तले जमीन खिसक गई और दिल की धड़कने और बढ़ गई। मैंने तुरंत पंडित योगेश समसी जी (योगेश भैया) को फोन किया तो उन्होंने कहा कि किसी भी समय कुछ भी हो सकता है, उनकी सेहत के लिए सद्गुरु जी के चरणों में अरदास करो। बलवंत सिंह जी ने परम पूज्य सद्गुरु जी से फोन पर अर्ज़ की तो हुक्म हुआ कि ज़ाकिर भाई ने बहुत जल्दी भाणा वरता लिया।
16 दिसम्बर (अमरिका की 15 दिसम्बर) को योगेश भैया का मैसेज आता है कि "ज़ाकिर भाई इस दुनिया मे नही रहे" ..... आज भी इस ख़बर की सच्चाई पर विश्वास नहीं होता..... । यह सच है कि जो आया है उसने जाना भी है..... लेकिन इतनी जल्दी....??
उनके निधन की ख़बर से सारा संगीत जगत शोक की लहर में समा गया। कोई भी इस ख़बर पर विश्वास नहीं कर पा रहा था.....
पद्मविभूषण उस्ताद ज़ाकिर हुसैन जी के विषय मे कुछ भी कहना या लिखना सूरज को दिया दिखाने के जैसा है। वह एक विश्व प्रसिद्ध और महान कलाकार तो थे ही उसके साथ - साथ वे एक महान इंसान भी थे जिनका कोई सानी नहीं।
एक ज़माना था जब तबला वादकों को निम्न श्रेणी में रखा जाता था और और उनको इतना सम्मान भी नहीं मिलता था जितना शास्त्रीय संगीत के गायकों या तंत्र वाद्य के कलाकारों को मिलता था। तबले का शास्त्रीय संगीत में आज जो स्थान है उसका श्रेय बहुत से बुजुर्ग कलाकारों जैसे उस्ताद अहमद जान थिरकवा, उस्ताद अमीर हुसैन खान, उस्ताद हबीबुद्दीन खान, उस्ताद अल्लारक्खा खान, पंडित किशन महाराज, पंडित सामता प्रसाद, पंडित अनोखे लाल मिश्रा आदि को तो जाता ही है लेकिन तबले को विश्व पटल पर प्रसिद्ध, प्रचलित और एक विशेष पहचान दिलाने का श्रेय यदि किसी कलाकार को जाता है तो वो उस्ताद ज़ाकिर हुसैन हैं।
विश्व के अलग-अलग देशों के महान संगीतज्ञों के साथ तबले के नाद का कैसे- कैसे प्रयोग हो सकता है ये उन्होंने बखूबी कर के दिखाया और तबले को वैश्विक संगीत में एक विशेष स्थान दिलवाया। उस्ताद ज़ाकिर हुसैन बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। वे तबला के अलावा और भी कई साज़ बखूबी बजा लेते थे। उन्होंने एक म्यूजिक बैंड "शक्ति" बनाया जो विश्व भर मे बहुत प्रसिद्ध हुआ। उन्होंने फ़िल्मों में संगीत निर्देशन भी दिया, गाया भी और कई फ़िल्मों में अभिनेता के रूप मे भी नज़र आए।
तबला सोलो वादन में उनका योगदान अद्वितीय है। वे हर घराने का तबला बजाने मे निपुण थे और सच तो यह है कि उन्होंने तबला वादन को घराने की संकीर्णता से मुक्त किया। एक ज़माना था जब एक घराने का तबला वादक या गुरु अपने शिष्यों को दूसरे घराने के वादकों का तबला सीखना तो दूर सुनने भी नहीं देते थे। "मेरा घराना दूसरों से श्रेष्ठ है" तबला वादकों के इस अहंकार को ज़ाकिर जी ने बहुत विनम्रता, प्रेम और सद्भावना के साथ तोड़ा और तबले को घराने की संकीर्णता से मुक्ति दिलाई। उन्होंने बहुत प्रेम और आदर के साथ हर घराने की खूबियों को अपनाया और अपने वादन के द्वारा उनका प्रचार भी किया। आज कोई स्वीकार करे या न करे पर हर घराने का तबला वादक उनका अनुकरण करता है और उनके जैसा बनना चाहता है।
उस्ताद ज़ाकिर हुसैन जी कहा करते थे कि "तबला मुख्य रूप से संगत का वाद्य है, एक श्रेष्ठ तबला वादक वही है जिसमें अलग-अलग कलाकारों के साथ संगत करने की कुशलता हो" । एक संगतकार के रूप मे उन्होने जो सफल प्रयोग किए वो अपने आप मे बेजोड़ हैं।
उन्होंने साथ-संगत की एक नई शैली को जन्म दिया। वे जिस कलाकार के साथ भी तबला संगत करते थे उस कलाकार की प्रस्तुति में उनकी संगत से चार चाँद लग जाते थे । ज़ाकिर जी तबला संगत करते समय मुख्य कलाकार के साथ इतना एक रस हो जाते थे कि ऐसा प्रतीत होता था जैसे ज़ाकिर जी अपने साथी कलाकार का मन पढ़ लेते हैं। और यही कारण था कि हर कलाकार का ये सपना होता था कि ज़ाकिर जी उसके साथ संगत करें। लेकिन यह भी सत्य है कि उनके इस गुण के कारण कुछ कलाकार उनको एक संगतकार के रूप मे अपने साथ बैठाना कम पसंद करते थे क्योंकि ज़ाकिर जी संगतकार होते हुए भी श्रोताओं के आकर्षण का केंद्र बन जाते थे।
ज़ाकिर जी एक महान कलाकार होने के साथ-साथ अति विनम्र, सम्वेदनशील, अत्यंत जागरूक और आध्यात्मिक सोच रखने वाले इंसान थे। वे जिससे भी मिलते थे उसे अपने मधुर और विनम्र स्वभाव से अपना बना लेते थे। अपने से बड़ों का आदर सत्कार, बराबर वालों से मित्रता का व्यावहार और छोटों को प्रेम और वात्सल्य भाव से मिलना उनके स्वभाव का विशेष गुण था। इसलिए उनसे मिलने वाले हर व्यक्ति के पास उनसे जुड़ी एक कहानी है।
नामधारी सिख समाज के साथ ज़ाकिर जी का संबंध 1970 के दशक से रहा है जब उन्होंने श्री सद्गुरु जगजीत सिंह जी की हजूरी में सद्गुरु प्रताप सिंह संगीत सम्मेलनों में लखनउ, औरंगाबाद, मुंबई आदि शहरों में अपनी करिश्माई प्रस्तुति दे कर श्री सद्गुरु जगजीत सिंह जी की अपार खुशियां और आशीर्वाद प्राप्त किया। लेकिन अपने कार्यक्रमों की व्यस्तता के कारण वे चाहते हुए भी सन 2010 से पहले श्री भैणी साहिब नहीं आ सके। मुझे आज भी 15 फरवरी 2010 का वह दिन जस की तस याद है जब ज़ाकिर जी अपने प्रिय गुरुभाई पंडित योगेश समसी जी के साथ श्री सद्गुरु जगजीत सिंह जी के दर्शन के लिए विशेष तौर पर पहली बार श्री भैणी साहिब पधारे और दोनों ने तबला जुगलबंदी की हाज़िरी लगा के सद्गुरु जी की ढेर सारी खुशियां और आशीर्वाद प्राप्त किया। उसके बाद सन् 2014, 2015, 2019 और 2023 में भी ज़ाकिर जी ने सद्गुरु उदय सिंह जी की हजूरी में सद्गुरु जगजीत सिंह संगीत सम्मेलन में अपनी कला से नामधारी साध संगत और संगीत रसिकों को मंत्र मुग्ध किया तथा सद्गुरु उदय सिंह जी की अपार खुशियों के साथ-साथ, साध-संगत और बाहर से आए श्रोताओं का प्यार और दुलार प्राप्त किया।
उस्ताद ज़ाकिर हुसैन जी का इस तरह अचानक दुनिया से विदा हो जाना सारे संगीत जगत और विशेष रूप से नामधारी संगत को एक गहरे दुःख में धकेल गया। उनके निधन से एक सांगीतिक युग का अंत हो गया। ऐसे कलाकार और ऐसे इंसान सदियों में एक बार जन्म लेते हैं। ज़ाकिर जी एक फरिश्ता थे जो 73 वर्षों के लिए पृथ्वी ग्रह पर आए और तबले की दशा और दिशा दोनों बदल गए।
उस्ताद ज़ाकिर हुसैन जी का इस दुनिया से जाना वैश्विक संगीत के लिए अपूर्णीय क्षति है। जब तक सूरज और चाँद हैं उनका तबला और संगीत हम सभी को आध्यात्मिक अनुभूति और आत्मरंजन से ओतप्रोत करता रहेगा । वे भले ही अब शारीरिक रूप से हमारे बीच नही हैं लेकिन अपनी कला के जरिए वो हमेशा हमारे दिलों में रहेंगे।
परम पूज्य सद्गुरु जी के चरणों में प्रार्थना है कि वे उस्ताद ज़ाकिर हुसैन जी की जीवात्मा को अपने चरणों में निवास प्रदान करें तथा उनके परिवार, शिष्यों और प्रशंसकों को उनका बिछोड़ा सहन करने की शक्ति प्रदान करें।
- राजेश कुमार मालवीया